||माँ||
मैं धूप लेकर निकलता हूं,
तो वो पीछे से बादल लेकर आती है,
माँ तू क्यू मेरे लिए खुदको सताती है?
तूने मुझे बड़े नाज़ुओं से पाला है,
गुस्सा और प्यार दोनो आंसुओं में नापतोल के डाला है..
वेसे तुझे पता है,
मैने तुझे ढूंढना छोड़ दिया है,
आजकल रोज़ जीता हूं, वो सब करके जो तूने सिखाया है,
शुक्र है रब का कि तू है, किसी के करीब तो किसी से दूर है,
लेकिन तेरे होने का एहसास भी काफ़ी है..
नींद थोड़ी शिकायत करती है,
तो आजल पलके अपने आप नज़्मे सुनके सो जया करती है,
वेसे पकेज़ा के गाने अभी भी सुनता हूं मैं
और आज भी झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में.. कानो में गुंझता है
लेकिन कुछ भी कहो.. सबसे ज्यादा याद तो खाना ही आता है..
ऐसे ही काफ़ी सारी यादें है,
तस्वीरे हर बार वो पुराना दरवाजा खोल देती है,
यादें और बारिश दोनो की,
अल्फाज़ कम रह गए है अब.. तो बस इतना ही कहुंगा..
शुक्रगुज़ार हु तेरा 🤍
~Joy
And I miss rasmalai so much, world's best! ;)
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