
|| ख़ामोश प्यार ||
इस तरह यूं मिला मुझे छूटता पल तेरा..
भागता ही रहा मैं, डोर से तुझे अभी भी पकड़ता हुआ..
कैसा है ये लम्हों का गज़ब फलसफा,
एक वक्त में ना हुआ मैं तेरा, ना तू मेरा..
खो गया मेरे हाथ से वो धागा तेरा..
अब कैसे, कहा और किस तरह मिलेगा
वो बचा हुआ पल मेरा?
निकलता हूं मैं यहाँ से रोज़ शाम
की कहीं किसी रात मिल जाए मुझे पिघलता मोम कोई..
दुआ मैं करता रब से की हर पहर हो बारिश वहीं।
थोड़ी सी शबनमी है
आंखों में सोच के, ये मेरी..
एक दीदार की तांक में खुली है
फिर भी ये पलके अभी..
इस तरह यूं मिला मुझे छूटता पल तेरा..
बस भागता ही रह गया मैं..
फिरता रहा उस डोर को थामे यूंही,
जो दूसरे सिरे से खोलकर गिरा दी थी तूने कबकी कहीं..
~Joy
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