Chào các bạn! Vì nhiều lý do từ nay Truyen2U chính thức đổi tên là Truyen247.Pro. Mong các bạn tiếp tục ủng hộ truy cập tên miền mới này nhé! Mãi yêu... ♥

गणेश: मेरे प्रेरणास्रोत


एक दिन मैं जब, हर दिन की भाँति रात्रि को सोने के लिए बिस्तर पर गया; तो बगल में नींद लाने की निरर्थक कोशिश कर रहे दादाजी ने मेरे चेहरे की निराशा को शायद भाँप लिया। उन्हें निंद बहुत कम आती थी। उन्होंने मुझसे मेरी निराशा का कारण पुछा। क्योंकि वे मेरे हर मुसीबत की घड़ी में मुझे राह दिखाते थे, उनसे कुछ भी छिपाना व्यर्थ था।

मैंने उन्हें अपने विद्यालय-संबंधी तनावों के बारे में बताया। उन्होंने मेरे इस 'आम'-से परेशानी का हल चुटकी में बता दिया। मैं नास्तिक था और दादाजी को इसका मलाल नहीं था। पर उन्होंने सलाह दी थी कि जीवन जीने के लिए एक प्रेरणास्त्रोत की आवश्यकता अवश्यंभावी होती है। तो उन्होंने मुझे एक ऐसे महापुरूष के उन पाँच मूल्यों के बारे में बताया जिससे मेरी दुनिया बदल गई। वे मूल्य 'गणेश' के जीवन से जुड़े थे।

दादाजी के प्रवचन के दौरान मैं कब सो गया मुझे ज्ञात ही नहीं हुआ। सुबह की दिनचर्या के बाद जब मैं बस्ता लेकर घर के बाहर जाने हेतु बढ़ा तो मैंने मंदिर से दादी की 'आरती' की ध्वनि सुनीं। वैसे तो मुझे इससे चिढ़ थी, पर दादाजी की पहली सीख याद आई-----
" गणेश प्रथम आराध्य है। हर दिन की शुरुआत उनके नमन से शुरु होनी चाहिए। उनके पूजन के बिना स्वयं शिव भी त्रिपुरा का युद्ध जीत ना सके थे।"

मैंने सोचा कि ऐसा करके एक पल के लिए मैं नेत्र बंद करके एक बिंदु पर केंद्रित होकर कुछ शांति महसूस कर लूँ। मुझे मेरे नास्तिक मस्तिष्क को भी संतुष्ट करना था। उस एक मिनट में मझे ऐसी संतुष्टि मिली जैसे महीनों से प्यासे राहगीर को रेगिस्तान में तालाब नज़र आ गया हो। मैं मंदिर से निकला तो माँ-पिताजी हर दिन की भाँति सोफे पर चाय पी रहे थे। तभी मुझे दादाजी की दुसरी सीख याद आई-----
" माता-पिता में ब्रह्मांड बसता है। एक प्रतियोगिता के तहत जब कार्तिकेय ब्रह्मांड का चक्कर लगाने निकल पड़े, तब गणेश ने माता-पिता के चक्कर लगाकर उन्हें ब्रह्मांड मान लिया था।"

मैंने उनके चरणस्पर्श किए। मैं कह नहीं सकता मुझे किस परम आनंद की अनुभूति हुई। वे भी हतप्रभ थे क्योंकि उनके नज़र में मैं 'हाथ से निकला हुआ' बच्चा था। मुझे गणेश के इस मूल्य से एक और प्रेरणा मिली--- 'वक्त पर सही निर्णय लेने की।

मैं घर से निकला बस स्टैंड की ओर जो कुछ ही दूरी पर था। रास्ते में मुझे फिर वहीं बिल्ली मिली जिसे मैं रोज तंग किया करता था। मैंने जैसे ही उसे छेड़ने के लिए पत्थर उठाया कि मुझे दादाजी की तीसरी सीख याद आई----
" पशुओं को पहुँचाई गई चोट, स्वयं परमात्मा को चोट पहुँचाने के समान है। एक बार एक बिल्ली को परेशान करके गणेश घर लौटे तो पार्वती माँ चोटिल थीं। तब माँ ने गणेश को पशुओं के सम्मान करने की सीख दी थी।"

जो जैसा कर्म करता है, उसे वापस वैसी ही नियती मिलती है। मैंने इस बात पर चिंतन किया और प्रण लिया चाहे पशु हो या मनुष्य किसी को तकलीफ नहीं दूँगा। मैं जब विद्यालय पहुँचा तब नोटिस बोर्ड पर भीड़ मची थी। शायद पिछले 'टेस्ट' के 'रिजल्ट्' आए थे। मैं कभी उन्हें 'चेक' नहीं करता था क्योंकि मैं जानता था कि मेरे अंक अव्वल ही होंगे। तभी अध्यापिका ने मुझे आवाज़ दी और मुझे 'टेस्ट' के मेरे खराब अंक आने पर प्रवचन सुनाने लगी। मैं चौंक गया। दादाजी की चौथी सीख का समय आ गया---
"कभी भी अपनी क्षमताओं पर अभिमान नहीं करना चाहिएजब शिव-पार्वती के जगह पर गणेश कुबेर के यहाँ भोजन करने गए तो कुबेर ने अल्पाहार देकर यह सोचा कि ये छोटे बालक उनके विशाल रसोई का कितना खा पाएँगे। गणेश ने पूरे महल के खाने को खत्म कर उनके अभिमान को तोड़ा था।"
मुझे मेरी सीख मिल गई थी। मेरा अभिमान ही था जिसने मुझसे मित्र, चैन और सुकून सब छिन लिया था।

दादाजी की पाँचवी सीख तो मैंने सुनी ही नहीं थी। मैं सो गया था उस वक्त। दोपहर को घर पहुंचते ही मैंने सीधा उनसे पूछा। उन्होंने कहा----
"जीवन में घटित होने वाले हर घटनाओं का कोई कारण होता है। यदि कुछ बुरा हुआ हो, तो भी उसका कोई अर्थ होगा। जैसे, दक्षिण के सूखे के लिए ले जा रहे दिव्य कमंडल को, ऋषि अगस्त्य से लेकर गणेश ने कौए रूप में उसे बीच पहाड़ी पर ही गिरा दिया जिससे कावेरी नदी बनीं। यदि वे उसे सपाट मैदान पर गिराते तो तालाब बनता, नदी नहीं बन पाती।"

मेरा तो जैसे हर कठिनाइओं का हल प्रत्यक्ष-सा हो गया था। मैंने अपने भूत को याद करके अपनी भूलों पर एक मुस्कुराहट छेड़ दी। गणेश मेरे प्रेरणास्रोत बनकर मुझे सच्चे विद्यार्थी और इंसान बनने की राह पर अग्रसर कर रहे थे।

लक्ष्य

Bạn đang đọc truyện trên: Truyen247.Pro