हाल-ए-दिल
अब हम क्या कहें उनसे
जो हमें याद तक नहीं करतीं।
हर वक्त वो बातों को घुमा देतीं हैं,
एक बार भी दिल-ए-कायनात से वाकीफ़ नहीं होतीं।
दोस्ती कुछ ऐसी शुरु की मुझसे,
रोम-रोम में बस वहीं बस गईं हैं उस दिन से।
पहले हर दफ़ा दिल बिखर-सा जाता था,
अब उसे रूठने में दिलचस्पी थोड़ी है !
हाल-ए-दिल कुछ ऐसा है,
बयां कर देने को जी मचलता है।
वो रहेंगी या नहीं कह देने के बाद?
रहने देते हैं, एहसासों को कौन पुछता है?
लक्ष्य
चित्र स्त्रोत: इंटरनेट से।
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