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हो गया नववर्ष??


यू ही देख रहा था इंटरनेट पर संदेशों को
पड़ी नजर उसपर अचरज में पड़ गया जिसे देखकर
था वह एक सवाल सुंदर, जिसका उत्तर ढूंढने को हुआ मैं तत्पर
हो गया नववर्ष?? कुछ मिला?? कुछ बदला??

इतने सारे नववर्ष आए गए
ना जाने कितनी ही चीजें हमें अपने जीवन में मिली
ना जाने कितने ही बदलाव हमारे जीवन में हुए और कितने स्वयं में किए
पर सही में कुछ मिला?? सही में कुछ बदला??

जिस गरीब को दो जून की रोटी नसीब नहीं
क्या उस बदनसीब को गेहूँ की खाल तक मिली?
जिस माँ ने अरसों अपने बेटे का इंतजार किया
क्या उस माँ से मिलने सरहद से बेटा वापस आया?

जिन नदियों ने हमारे खेतों को सिंचा
क्या उन माता रुपी जलस्त्रोतों को स्वच्छता मिली?
जिन वृक्षों ने एक एक जीवों को पाला पोसा
क्या उन जीवनदाताओं को विकास रुपी शहादत से छुटकारा मिला?

क्या उन लोगों की जिंदगी फिर से निखरी,
जिनके जीवन को उन भ्रष्टाचारियों ने उजाड़ा
जिन्होंने बड़े बड़े सपने दिखाकर
उनके वफादारी का फायदा उठाया?

क्या उन सब परिवारों को इंसाफ मिला,
जिनका जीवन-मरण आतंक के साए में होता है
जो रोज मर मर के जीतें हैं और केवल
अपनो को आतंकी बनते देखते हैं???

क्या उन बेटियों को स्वतंत्र विचार २खने का अधिकार मिला
जिन्हें छोटी उम्र से ही चुल्हे में तपना सिखाया गया??
क्या उन मासूमों को निर्णय लेने का सौभाग्य मिला,
जिनपर जन्म के वक्त से ही दूसरों के सपने लादे गए??

क्या हर उस बहन को उन दरिंदो से आजादी मिली
जो भूखे भेडि़यों की तरह उनके सम्मान के शिकार की तलाश में गली-गली तैनात हैं ??
क्या उस कर्ज में डूबे किसान को कोई उम्मीद मिली
जिसके सहारे वह अन्न उगाने में संकोच ना करे??

जो कभी वक्त पर अपनी मंजिल पर नहीं पहुँचा
क्या उस रेलयात्री को समय पर चलने वाली ट्रेन में बैठने का मौका मिला??
जिन बुजुर्गों ने अपनी जीवन की कमाई बच्चों के भविष्य पर उडेल दी
क्या उन्हें वृद्धाश्रम के बाहर की दुनिया का साक्षात्कार हुआ??

जिसने धूप में तप कर, अपना सारा काम छोड़ कर
लंबी कतारों में खड़े रहकर मतदान किया
क्या उस प्रजातंत्र की आत्मा मतदाता को
अच्छे दिनों की सौगात मिली??

नववर्ष बीत गया, वो चार बोतल वोडका बीत गया
वो डिस्को डांस बीत गया, वो पार्टी का माहौल बीत गया
पर जिसने अपनी माटी में अपने ही लालों का खून घुलते देखा
क्या उस भारत माँ को कोई सच्चा सपूत मिला??

खत्म ही ना होगी यह कविता
यदि लिखने बैठ जाऊँ और भी समस्या
बदल गया है सब कुछ पर फिर भी कुछ ना बदला
क्या इसी तरह बितेगा हर नववर्ष हमारा???

लक्ष्य झा

आप सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएँ।

*चित्र* : फेसबुक से।

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