ये देश नहीं रहा वीर जवानों का।
ये देश नहीं रहा वीर जवानों का
ये देश है अब उन खानसामों का
जिन्होंने रुहों को लूटा है
हमारे खून के एक एक बूँद को चूसा है।
ये देश नहीं रहा अन्नदाता किसानों का
ये देश है अब उन बिचौलियों का, उन बाबुओं का
जिन्होंने चिंता की तो केवल अपने स्वार्थ की
'भगवान' को भूखे मरने छोड़ दिया और 'आह' तक न की।
ये देश नहीं रहा न्याय व्यवस्थाओं का
ये देश है अब उन भ्रष्टाचारी वकीलों का, न्यायाधीशों का
जिन्होंने मुज़रिम को सूली से बचाया है
बेगुनाहों की चीखों से कारागृह को कलंकित किया है।
ये देश नहीं रहा रोजगारियों का
ये देश है अब उन घूसखोरों का
जिन्होंने प्रतिभाशाली गरीबों को अँधेरे में दबाया है
प्रतिभाहीन लोगों को गद्दी तक व्यर्थ पहुँचाया है।
ये देश नहीं रहा गरीब - फकीरों का
ये देश है अब उन नमकहरामों का, अज्ञानी मक्कारों का
जिन्होंने डाका डाला उनके दो अन्न के दानों पर
सत्ता की रोटियाँ सेंकी गरीबों की चिताओं पर।
ये देश नहीं रहा स्त्रियों का
ये देश है अब उन कौरवों का, उन असुरों का
जिन्होंने उनकी मर्यादा पर हाथ उठाया है
सजा मिलने से खुद को हर वक्त बचाया है।
आत्मा कराहती होगी स्वतंत्रता सेनानियों की
देख के देश की ऐसी विपरीततम परिस्थिती
मसीहा नहीं चाहिए देश को कोई भी इस वक्त
हर युवा को मसीहा बनने की जरूरत है।
लक्ष्य
चित्र: इंटरनेट से।
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