मेरे देश की धरती
बचपन में सुनी थी जब यह गीत सुनहरी
खुशी से झुम उठा था मैं
देश के प्रति अपनी भक्ति को
समग्र विश्व में बता आया था मैं ।
तब की बात की कुछ और थी
न आतंक न भ्रष्टाचार था ।
तभी तो इस गीत ने
सभी भारतीय को झूम उठाया था।
पर आज जब आँखें फेरता हूँ ,
तो अलग नजारा मिलता है।
ऐसा लगता है मानो,
नर्क जैसा अँधेरा है।।
जहाँ देखो वहाँ आतंकवाद की मृदुल छाया है,
जब देखो तब देश के लिए मर मिटने को जी चाहता है।
भ्रष्टाचार की छाया सारे देश में फैल रही देखो,
इसकी जड़ तो मानो सारे देश को पकड़ बैठी देखो।
ऐसे ही न जाने कितने समस्याएँ लेकर बैठे हैं हम,
जिनका समाधान दूर-दूर तक भी नजर नहीं आता हमें।
कभी एकांत में भी सोचते रहते हैं हम,
क्या यही भारत का सपना बापू ने देखा था।
कभी मन में चिंतन करते रहते हैं हम,
क्या इसी धरती से सोना निकलता था।
लक्ष्य
"परीक्षा ने मेरी कलम को,
कई और कामों में कर दिया तैनात
देरी हुई इस कविता में
क्षमा माँगता है यह कलाकार ॥"
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