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मैं दुर्गा हूँ।

मैं दुर्गा हूँ।
सिर्फ इसलिए नहीं कि मैं एक स्त्री हूँ,
इसलिए भी कि मेरा हर एक दिन एक संघर्ष है।
मैं दुर्गा हूँ।

मैं समाज द्वारा कोसे गए माँ की बेटी हूँ।
रोज-रोज तथाकथित समझदारों के ताने सुनती रहती हूँ।
फिर भी अंतिम समय तक अपने परिवार को सींचती रहती हूँ।
मैं शैलपुत्री हूँ।

मैं अपने बूते पर पढ़ने वाली छात्रा हूँ।
शिक्षा नामक तपस्या की मैं अव्वल तपस्विनी हूँ।
जितना भी दबाई जाऊँ, मैं निखरती रहती हूँ।
मैं ब्रह्मचारिणी हूँ।

मैं समग्र नकारात्मक तत्वों से लड़ने वाली वीरांगना हूँ।
हर तरफ से मुझे तोड़ने का प्रयास हो, तब भी मैं लड़ती रहती हूँ।
हार मानने के लिए कभी राज़ी नहीं होती हूँ।
मैं चंद्रघंटा हूँ।

मैं प्रथम मार्गदर्शक हूँ।
मेरे सानिध्य में जीवन के अंकुर फुटते हैं।
संस्कार, व्यवहार और अनुशासन की मैं जड़ हूँ।
मैं कूष्माण्डा हूँ।

मैं हमेशा से तिरस्कृत जन्मदाता हूँ।
नौ महीनों के कठिन परिश्रम से जीवन-चक्र चलाती हूँ।
भले ही सानिध्य ना मिले, कर्त्तव्य करती जाती हूँ।
मैं स्कंदमाता हूँ।

मैं सीमा पर कदम-से-कदम मिलाती हुई सैनिक हूँ।
अपनी भूमि पर दुश्मनों की नज़र तक नहीं पड़ने देती हूँ।
अनेक हथियारों को चलाने की काबिलियत से मैं लैस हूँ।
मैं कात्यायनी हूँ।

मैं क्रोध का पर्याय हूँ।
सहन की सीमा लांघ जाने पर किसी को नहीं बख़्शती हूँ।
जो भी मेरे स्व को ठेस पहुँचाता हूँ, मैं चुप नहीं रहती हूँ।
मैं कालरात्रि हूँ।

मैं हर परिस्थिति में संग देने वाली संगिनी हूँ।
पुरुष हार मान जाए, मैं कभी हौसला नहीं खोती हूँ।
जीवन के हर मोड़ पर सुख-दुःख बाँटती रहती हूँ।
मैं महागौरी हूँ।

मैं अनगिनत विद्यार्थियों की शिक्षिका हूँ।
अज्ञानियों को ज्ञान के समंदर के पार ले जाती हूँ।
सभ्यता में जीने के गुण से उन्हें लैस करती हूँ।
मैं सिद्धिदात्री हूँ।

मैं एक हूँ पर अनेक कर्त्तव्यों का निर्वाह करती हूँ।
बंदिशों से परे खुले आसमान से बातें करती हूँ।
मैं रचयिता की चहेती, लड़की हूँ।
मैं दुर्गा हूँ।

लक्ष्य

चित्र स्त्रोत: एम.आई. कैलेंडर, इंटरनेट।

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