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मांडवी

दूर से देख मांडवी लग रही थी साफ,
शायद ही किसी को ज्ञात होगा,
कि वह कितना है दुख समेटे उर में
कितनी है पीड़ा छिपाए चित्त में

आँखे फेरी किनारे की ओर ,
थी एक नारी कपड़े निचोड़ ,
पास बैठा नन्हा सा बालक,
अबूझ , नादान, अज्ञात
झाग युक्त जल को ले अपने मुख की ओर,
यूँ गटक २हा था मानो मांडवी के दुख का वही हारी है।

नजरें उठी यंत्रों की ओर
जो लगे थे अपने कार्य की ओर,
विशाल पुल के निर्माण में,
मांडवी ने दर्द सह, न चूँ कि उस ओर।

है उसमें माता की प्रज्वलता,
खूबी है एक त्यागिनी की,
समग्र २ाहर के मल से ग्रसित
हमेशा कल - कल करती २हती।
ना विद्रोह करती, ना प्रतिरोध
केवल किसी कोने की चट्टान पर से गिर
बहाती, हदय से, दुख से सनी हुई नीर।

इसी चिंतन में 'बस' आगे निकल गई,
वह दृश्य आँखों से ओझल हो गया,
अन सोच में हो गया मन रत,
फिर न मिली उसके बारे में सोचने की फुर्सत ।

                                                                       लक्ष्य

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