बादल गरजो!
बादल गरजो!
बादल गरजो!
घनन घनन तुम गरजो !
बादल गरजो !
तुम्हारी ही गरज से
तृप्त होता सारा संसार है;
तुम्हारे ही हुंकार से
बंधता एक समां है।
समां बने ध्वनियों की,
पपीहे की पीहु की,
मोर के नाच की,
पवन के सरसराहट की,
पत्तों के सनसनाहट की ।
इस पल को न धूमिल होने दो,
बादल गरजो!
तुम न गरजे तो दुनिया भूखी,
कृषि-सिंचाई सब रुखी-सुखी।
कृषक के पसीने हैं तुझ में,
उसके मेहनत को यूँ न जाने दो,
बादल गरजो!
सीने में तुम्हारे है बसी विनाश की लकीर,
जिसकी रौशनी में तृप्त होते हम फ़कीर ।
बादल गरजो, तुम बरसो,
बूँद बूँद को तरसे हम,
बूँद बूँद टपकाओ।
बादल गरजो!
बादल गरजो!
लक्ष्य
चित्रः इंटरनेट से।
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