जज़्बात
कभी सुना है दोस्त को कहते हुए
जिंदगी मेरी रूक सी गयी है।
कभी सुना है दोस्त को रोते हुए,
क्योंकि एक माशूका छोड़ के गई है।
कभी दोस्त को असमंजस में देखा है
क्योंकि उसने जज्बातों की सुनी है।
कभी दोस्त को हारते देखा है,
क्योंकि एक पल की खुशी की आस उसपर हावी हुई है।
कैसे बात करुँ उससे ?
यह भी एक अजब पहेली है।
क्यों सुंदर चेहरे पे मायूसी दिख रही है?
क्या याद दिलाऊँ उसे ?
याद करो वो दिन
जब दोस्ती का खुमार हमारा नया-नया छाया था,
आज घिस-घिस कर कितना निखर-सा आया है
क्या आज के जज़्बात इससे ज्यादा अहम हैं?
याद करो वो दिन
जब पहला-पहला प्यार हुआ आया था,
वो खुमारी, वो आवारगी
क्या आज के जज़्बात उससे ज्यादा अहम हैं?
याद करो वो दिन
जब पहली बार रास्ता गलत लगा था,
वो मायूसी, वो नाराज़गी
क्या आज के जज़्बात उससे ज्यादा ऊँचे हैं?
याद करो वो दिन
जब सपनों के दहलीज़ पे पहला कदम रखा था,
वो जश्न-ए-खुमारी, रास की प्याली
आज के जज़्बात उससे ज्यादा रंगीन हैं?
याद करो वो दिन
जब भविष्य की फिक्र पहली बार सतायी थी,
वो बेरुखी, वो भावनाएँ भरी-भरी
क्या आज के जज्बात उससे कहीं ऊपर है?
आँखें बंद करो, अपनी मंजिल को देखो
अपनी खूबियों पे भरोसा रखो
काबिल हो जिसके अभी सिर्फ उसके बारे में सोचो,
जवाब मेरे सवालों के खुद-ब-खुद आ जाऐंगे.....
जब जिसका वक्त होगा वो लम्हें खुद-ब-खुद तुम पा जाओगे ।।
लक्ष्य
चित्रः इंटरनेट से।
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