कुछ कहो।
कुछ है नहीं कहने को,
जुबान खामोश है।
लब्ज़ चाहते हैं बहुत कुछ इज़हार करना,
मगर दिल में अजीब-सी कशमकश है।
कश्मकश ऐसी जो बयां ना हो सके,
दबी है वो बात दिल के किसी कोने में।
कोशिश की बहुत जिक्र करने की उसे
मगर कमबख्त मन रोक लेता है मुझे।
मन ने मेरा अजीब-सा खेल खेला है,
सोचने पर मुझे मजबूर किया है।
नहीं समझ आ रहा कुछ,
किसकी सुननी चाहिए मुझे।
मन जानता है अंजाम मेरी छुपी बातों का,
पर दिल बड़ा बद्तमीज है:
रह-रह के हर धड़कन मुझे,
सब कहने को उकसाती है।
मत कहो मुझे कुछ कहने को,
दबी रहने दो उन बातों को।
नहीं तोड़नी है मुझे इस प्यारी दोस्ती को,
नहीं है मेरी जरूरत उन जज़्बात को।
जज़्बात ऐसे हैं जिन्होंने मुझे झकझोरा है,
रात-रात भर तुम्हारी यादों ने जगाया है।
कभी सोचा नहीं था यूँ होने लगेगा महसूस,
पर इन सबसे मुझे दूर रहना है।
मत पुछो उन जज़्बात के बारे में,
उनका होना मेरी एक गलती है।
हाथ थाम के रहो मेरा,
ये दोस्ती मेरे लिए ज्यादा जरूरी है।
लक्ष्य
चित्र स्रोत: इंटरनेट से।
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