{3.} एक और अंधेरी रात
रात हो चुकी थी।सभी सोने के लिए अपने-अपने कमरों में जा चुके थे।राज बहुत काली थी।चारों और कीट-पतंगों की झं, झं के अलावा बस अंधेरा ही अंधेरा था।
किशोर कल रात से हो थोड़ा अंतर्मन से डरा हुआ था इसलिए उसे आज भी सोने में थोड़ी कठनाई महसूस हो रही थी।
उसकी आँख लगी ही थीं कि अचानक उसके बिस्तर के पास दो बिल्लियों की लड़ाई में हुए शोर को सुनकर वह चिल्लाकर उठ बैठा।
''बचाऔ, बचाऔ, मम्मी पापा यहाँ भूत है।''
उसके मम्मी पापा नींद से जागकर दौड़कर उसके पास पहुँचे और बिल्लियों को वहाँ से भगाया।नौकर रतन भी वहाँ पहुँच चुका था।उसने भी किशोर को सांत्वना दी।बेचारा किशोर अब शर्मिन्दा हो रहा था।
सभी उसे समझा-बुझाकर सोने चले जाते हैं।
वह फिर एकांत में पहुँच जाता था।बिल्ली कांड से अभी भी उसका दिल धडक रहा था।नींद तो आँखों में अब थी ही नहीं।वह आँखें खोलकर ही रात पूरी करना चाहता था।
उसने बाहर आज फिर वही पदचाप की आवाज सुनी।ये आवाजें धीरे-धीरे तेज होतीं जा रही थीं।जैसे कोई व्यक्ति उसकी और बढ़ा चला आ रहा था।पदचाप की आवाजों से प्रतीत होता था कि कोई एक व्यक्ति नही अपितु व्यक्तियों की संख्या एक से अधिक है।
अब किशोर को पदचाप की आवाज के साथ-साथ खुसर-फुसर की आवाजें भी आने लगीं थीं।जैसे-जैसे समय कटता जा रहा था ये आवाजें तेज व स्पष्ट होती जा रही थीं।
किशोर पहले ही एक ड्रामा कर चुका था अब वह ऐसा दौबारा नहीं करना चाहता था कि उसे फिर से शर्मिंदा होना पड़े सो वह बस चादर को अपने चारों ओर से लपेटे पड़ा रहा।
अब खुसर-फुसर की आवाजों में कुछ नयी आवाजें भी जुड गई थीं जो किसी महिलाओं के सुबकने की थीं।बहुत डरावना मजंर था।किशोर तकिए के नीचे सर दिए इन आवाजों को सुनने से बचने की कोशिश कर रहा था।
धीरे-धीरे समय कट रहा था और आवाजें तेज होतीं जा रही थीं।
जो आवाजें घर से बाहर सुनाई दे रहीं थी उनसे ये पदचाप अलग थे।किशोर साफ-साफ सुन सकता था कि ठीक उसके कमरे के दरवाजे पर कोई है जो दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा है।किशोर ने डरकर अपनी चादर को चारों और से कसकर दबा लिया वह एसी वाले कमरे में भी पसीने से तरबतर हो रहा था।कमरे का दरवाजा खुल चुका था।कोई व्यक्ति उसके बिस्तर की और धीरे-धीरे बढ रहा था।किशोर पदचाप से आसानी से अनुमान लगा सकता था।उसका दिल जोरों से धडक रहा था।उसकी और चलते व्यक्ति का एक एक पग उसे काल का पग प्रतीत हो रहा था।
तभी किसी ने उसकी चादर को पकडकर ऊपर की और उठाया।
किशोर एक दम से चिल्ला उठा, ''नहीं, नहीं,मुझे मत मारों।बचाऔ, अरे, कोई तो मुझे बचाऔ।मर गया मैं।''
अनुपमा मुस्से से किशोर पर चिल्लाई, ''मैं हूँ बेवकूफ....तेरी माँ।सुबह के आठ बज रहें हैं और अब तक सो रहा है और उठाने पर ऐसे चिल्ला रहा है जैसे पाँच बरस का बच्चा डरकर चिल्लाता है।''
किशोर शर्मिंदा होकर बोला, ''साॅरी, साॅरी, मम्मी।मैं बस डर गया...थोड़ा सा।
अनुपमा मुस्कुराते हुए बोली, ''थोड़ा-सा नहीं, बहुत ज्यादा।चल सुबह हो रही है अब चाय पानी पी ले।''
रमन व नौकर रतन भी वहाँ पहुँच चुके थे।
अनुपमा उन दोनों से बोली,''आप जाऔ अब यहाँ सब ठीक है।''
रमन अपने सर पर हाथ मारते हुए बोले, ''उफ! ये फिर से डर गया गधा।''
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