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{2.}अगला खुशनुमा दिन

किशोर गन लेकर लडखडाहट के साथ दौडता हुआ दरवाजा खोलने हेतु पहुँचा।दरवाजे को अभी भी कोई खटखटा रहा था।किशोर ने दरवाजा खोलते ही बाहर से दरवाजा खटखटाने वाले पर अपनी गन तान दी। ''बेटा ये क्या बदतमीजी है? '' किशोर ने ध्यान दिया तो देखा कि सामने मम्मी और डैडी खड़े थे।
''दिन के ग्यारह बज रहें हैं तुम अब तक सो रहे थे? और हाँ, ये गन किस लिए...?'' किशोर को डाँटते हुए उसके डैडी रमन जी बोले।
''वो...रातभर मुझे नींद नहीं आई, इसी लिए देर तक सोता रहा।''किशोर ने सकपकाते हुए जवाब दिया।
''और ये किस लिए? '' किशोर की मम्मी अनुपमा ने गन की और हाथ से इशारा करते हुए पूछा।
''मम्मी. ...अब छोडो भी।मैंने सोचा अभी भी रात हो रही है इसलिए दरवाजा खोलने पर सुरक्षा रहे जो सो गन उठा लाया।''किशोर शर्माते हुए किसी तरह वार्ता पर पर्दा डालता हुआ बोला।
तीनों घर में प्रवेश करते हैं।
''नये घर का उद्घाटन तो किशोर ने किया है।हम तो देर से पहुँचे।''रमन जी ने व्यंग्यात्मक लेहजे में कहा।
''हाँ. ..वो भी सारी रात जागकर।'' अनुपमा भी अपना व्यंग्य बाण छोड़ देती है।
''मम्मी-डैडी, आप मुझे परेशान मत करो।'' किशोर इतना कहकर अनुपमा की छाती से लग जाता है।
अनुपमा भी किशोर को दुलारकर एक अच्छी माँ होने का परिचय देती है।
''लेकिन रातभर नींद क्यों नही आई तुम्हें।'' अनुपमा ने किशोर से पूछ ही लिया।
''अब क्या बताऊँ? सारी रात बरसात और आँधी ही चलती रही।बहुत शोरगुल था।इसलिए ही नींद नहीं आ पाई।''किशोर मौसम पर ठीकरा फोडता हुआ बोला।
''सारी रात शोरगुल होता रहा या किसी के ख्वाबों में डूबा रहा? '' अनुपमा ने व्यंग्यात्मक लेहजे में पूछा।
''मम्मी परेशान मत करो।ऐसा कुछ नहीं है।''किशोर परेशानी भरा चेहरा बनाकर इतराते हुए बोला।
''अब बातें ही बनाते रहोगे या कुछ खाने-पीने को भी दोगे।''रमन जी ने अपने पेट पर हाथ रखते हुए कहा।
''हाँ, क्यों नहीं? ये रही शहर की फेमस बिरयानी।पेट भर भरकर खाइए।''बैग से बिरयानी की प्लेटें निकालते हुए अनुपमा जी बोलीं।
''कल तक दो नौकर यहाँ आ जाएँगे।एक घर के अंदर का काम संभालेगा दुसरा आँगन की फुलवारी और गेट को संभालेगा।''रमन जी बिरयानी खाते-खाते बोले।
''नहीं, गेटमैन तो है।बाहर वाला बस फुलवारी ही संभालेगा।''किशोर बोला।
''तुम्हे इतनी जल्दी गेटमैन कहाँ से मिल गया?''अनुपमा ने पूछा।
''वो तो डैड ही बताएँगे।इन्हें कहां मिला था? मैं तो कल जब यहाँ आया तो वो यहीं था।यहाँ तक की मेरे लिए गेट भी उसी ने खोला था।मैं तो सोच रहा था कि सारी रात अकेला रहूँगा मगर यहाँ आया तो उससे मिलकर सरपराइज रह गया।किशोर ने उन्हें बताया।
''नहीं, मैंने तो किसी को गेटमैन नही रखा, हो सकता है पप्पू(रमन जी का पूर्व पी ए) ने उसे यहाँ रखा हो वैसे नाम क्या है उसका?पप्पू बेचारा बहुत ध्यान रखता था मेरा।इसी घर के बनते समय दुर्घटना में मर गया वो।छत से बेचारे का रात में पैर फिसल गया था।''रमन जी ने हाथ में उठाई चम्मच पर ध्यान लगाते हुए कहा।
''रतन चौधरी नाम है।बोल रहा था कि मैं तो बहुत पहले से यहाँ हूँ।किशोर ने बताया।
''चलो एक नौकर फ्री में मिला।''रमन जी हँसते हुए बोले।
दरवाजे पर किसी ने कुण्डी खटखटाई।अंदर बैठे तीनों ने बड़े ध्यान से दरवाजे पर टकटकी लगाई।
''कौन है? दरवाजा खुला है।अंदर आ जाऔ।'' अनुपमा जी बोलीं।
''नमस्ते मैम साब!...नमस्ते छोटे साब!...नमस्ते साब! मैं रतन...छोटे साब ने बता ही दिया होगा मेरे बारे में।''एक आदर्श नौकर की तरह गर्दन झुकाकर रतन उनके समक्ष पेस होता हुआ बोला।
''तो तुम हो रतन।किशोर अभी जिक्र कर रहा था तुम्हारा।किसने रखा था तुम्हें यहाँ?''रमन जी ने सिगरेट जलाते हुए पूछा।
''साब! हमें पप्पू साब ने यहाँ रखा था।वो साब बहुत अच्छे आदमी थे।''रतन ने पप्पू के प्रति बड़ा ही सम्मान जताते हुए कहा।
''और एक अच्छा दोस्त भी।मुझे उसे खोने का बहुत दुःख है।''रमन जी थोड़ा भावुक होते हुए बोले।
अनुपमा ने उन्हें संभाला।
''साब बस आप तीनों ही रहेंगे यहाँ? ''रतन ने प्रश्न किया।
''कल बड़ा बेटा और बेटी भी आ रहें हैं।इस बार गर्मियों की छुट्टियों का आनंद नये घर में ही उठाया जाएगा।''रमन जी बोले।
''अच्छा साब किसी भी चीज की ज़रूरत हो तो मुझे आवाज लगा देना।''घर से बाहर जाते हुए रतन बोला।
सभी ने हाँ में सर हिला दिया।
''अब बताओ अनुपमा कैसा लगा मेरा नया महल? पहले जंगल था यहाँ और जंगल में ही मेरा छोटा-सा गोदाम था।यहाँ बसापत आ पहुँची तो हमने भी गोदाम को महल में बदल दिया।वर्तमान में यहाँ शहर की सबसे महँगी जमीन हैं।''रमन ने अपने परिवार वालों को बताया।
सभी ने जमीन की कीमत की हैसियत पर अतिश्योक्ति प्रकट की।
''कल रवि और बेटी मनु भी यहाँ आ जाएँगे तो रतन को बुलाकर उनके लिए भी कमरे साफ करा दो।''अनुपमा किशोर से बोली।
किशोर ने आवाज देकर रतन को बुलाया और कमरों की साफ सफाई का आदेश दे दिया।रतन ने आदेश का पालन किया और कमरे एकदम चमकाकर तैयार कर दिए।


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