ज़रूरतें
मुझे चाहतों ने थामा यहाँ
पर ज़रूरतों ने पीछे खींच लिया
उसके पलकों में छिपे भाव
कुछ कह रहे थे
पर ज़रूरतों के शोर में मुझसे सुना ना गया
एक जोश था उसके हर लफ्ज़ में
पर मेरे कानों के शोर ने
उसे भी अनसुना कर दिया
ख्वाब देखे उसके साथ के
पर परिवार को छोड़ा भी ना गया
पुकारा था उसकी चाहतों ने
पर मुझसे जाया ना गया
छिड़क दिया उसके बड़े हाथों को
ज़रूरतों का दामन फिर थाम लिया
ना ज़िन्दगी में जगह प्यार की
हर कोना ज़रूरतों और ज़िम्मेदारियों से जो भरा था
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