ज़िद्द
'तारीख में लिखेंगे नाम अपना'
ऐसा ख्याल हम रखते थे
जोश था दिल में
उमंग आसमां को छूने की
बेबाकी थी लफ़्ज़ों में
हर ख्वाब अपना होता था
जिसको सच करना ज़िद्द होती थी हमारी
फिर थपेड़े लगे ज़िन्दगी के
हक़ीक़त आई सामने
ख्वाब खुली आँख के हों या बन्द के
ख्वाब ही होते हैं
सच करना जिन्हें ज़िद्द होती है
पर उस ज़िद्द को बनाए रखें
ऐसी कूबत नहीं हममें
बीते हर लम्हे के साथ
ज़िन्दगी आगे बढ़ती जाती है
जिद्द भी धीरे-धीरे खत्म होती जाती है
फिर रह जाता है तो बस एक अहसास
एक अहसास खालीपन का
उस उमंग का
जिसे पूरा करने की आह तो आज भी है
पर ज़िद्द नहीं रही अब हममें
और दर्द तब उठता है
जब वो कह जाते हैं
'अरे तुम तो समझदार हो गए हो!'
है समझ ये
या बस अहसास
के ख्वाब ख्वाब है
और हक़ीक़त में ज़िद्द नही होती ।
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