रात का सूनापन
रात का सूनापन
अक्सर लोगों को चुभता है
पर कोई पूछे उनसे
जिनका ये सूनापन ही अपना है
रात के अंधेरों में
चांदनी की शीतल छाओं में
जब आसमान में तकते हैं
तारों को देख वो खुश होते हैं
इन्हीं तारों के बीच जल-बुझ रोशनी को फिर वो ढूंढते हैं
खोजते हैं उन विमानों को
जो आसमान से गुज़रते हैं
इन्हीं को तकते तकते
फिर वो ख्वाब बुनते हैं
वो ख्वाब जो नन्हीं आंखों को
चमकने देते हैं
जीने देते हैं उस कल में
जो अभी सच नहीं हुआ
पर जो उनका अपना है
दूर दुनिया की सोच से
इसके शोरोगुल से
ये रात का सूनापन ही तो है
जो उनका अपना है।
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