मतलब
"मतलब के सब साथी
मतलब ही सबका खुदा
तू भी मतलबी
मैं भी मतलबी
फिर काहें का गिला ?"
करना सवाल कितना आसान हो जाता है
मान लेना कि ये मतलब की दुनिया है
सब कुछ आसान कर देता है
पर क्या यही ज़िन्दगी की हक़ीक़त है?
क्या मतलब ही सबसे बड़ा है?
या कुछ और भी है जो मतलब के परे छिपा है?
या एक वहम, या आस कि
मतलब आगे भी सोचा जा सकता है
कि इस दुनिया में ऐसे भी लोग हैं
जिनका मतलब से वास्ता ज़रूर है
पर ना उनका ये खुदा है।
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