भूली बिसरी कहानी
भूली बिसरी एक कहानी
जो न है अब लोगों की जुबानी
पर वक़्त था एक
जब सब तरफ थी उसी की बातें
ना थी वो कहानी अलग
न कोई नई बात थी
पर फिर भी हर ज़ुबान पर
बस वही एक बात थी
पर वक़्त बीत गया
बात पुरानी हो गयी
उसे भी सुकून मिल गया
जिसके कदमों का पीछा
लोगों की फुसफुसाहट करती थी
और जिसकी पीठ पीछे
ना जाने कितनी बातें बनती थी
थी उसकी कहानी औरों जैसी
कोई नई बात न थी
पर वक़्त के साथ वो यादें भी धुंधली हो गयी
डर और शर्मिंदगी की जगह
अब सुकूं ने ले ली
फिर यही सोच वो मुस्कुरा देती
लोगों की याददाश्त की कमज़ोरी
उसे आखिर सुकून दे गई
पर हँसी का साथ
एक आंसू दे जाता था
लोग कहानियों को तो बिसार बैठते हैं
पर यादों को भूल पाना
आसान तो नहीं।
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