फैंसला
Dedicated to Vidhi1989
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एक बन्द दरवाज़े से आहट थी आ रही
धीमी-धीमी, सहमी-सहमी
गुनगुनाहट सी आ रही
चाहा इक बार के
करीब से सुन लूँ
बड़ी जो दरवाज़े की ओर
तो कुछ हुआ
एक पल पहले जो मीठी सी गुनगुनाहट थी
अब सिसकियों में बदल गयी
ना स्वर मीठा रहा अब
ना ही मेरे दिल में वो सुकूं रहा
रहा तो बस ख्याल
आखिर क्या है ऐसा
जिसने मिठी गुनगुनाहट को
सिसकियों में बदला
आखिर क्यूँ बस एक आहट ने
एक क्षण में मीठे स्वर को
रुदन में बदल दिया ?
आखिर क्या है ये राज़
जो बन्द दरवाजों के पीछे है छिपा ?
क्यूँ बस एक आहट ही काफी है
किसी की ख़ुशी को गम में बदलने के लिए?
आखिर क्यूँ मेरे दिल में ये दर्द उठता है ?
क्यूँ उस गुनगुनाहट का ख्याल भी मुझे कंपकपा जाता है ?
क्यूँ वो सिसकियाँ मेरे ज़हन से जाती नहीं ?
क्यूँ वो दर्द मुझे अपना सा लगता है ?
क्यूँ ये डर रूपी रावण आज भी हमारे जीवन में है ?
क्यूँ इसका होता दहन नहीं?
क्या दोष है उस मीठी आवाज़ का
जिसकी सिसकियाँ मुझे सोने नहीं देती?
क्या कोई राम नहीं जो उसे बचा ले ?
क्या एक पुतला जलाना काफी है
इस रावण को मारने के लिए?
या ज़रूरत है किसी राम की इसे मारने के लिए?
कहाँ ढूंढे उस राम को
ये तो कलयुग है
रामराज नहीं?
ढूंढे भी तो क्या वो मिलेगा
और मिला भी तो क्या होगा वो राम ही?
क्या करेगा वो संहार उस रावण रूपी भय का
या होगी कलयुग के कपट की परछाई उस पर भी?
ना होगा पुरुषोत्तम वो
ना लाएगा रामराज कभी
टूटेगा तो बस भ्रम फिर
जो आज भी हमारे मन पर है
है राम कोई
था रावण कोई
ना जाने कब समझेगा ये इंसान भी
के हर बन्द दरवाजे के पीछे एक रावण है
और हर गुज़रने वाले में एक राम
बस फर्क ये है के
वो राम त्रेता का नहीं कलयुग का है
ये फैंसला हमारा है के
बस गुज़र कर जाना है
या उन सिसकियों को फिर गुनगुनाहट में बदलना है
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Hello dear dear readers :)
I don't know if I can even assume that you have liked this poem.
Because I don't know how it turned out the way it did.
I started this poem back in May,2015 but never knew where to take this idea from there but today when I tried to re-write it, this happened. Maybe because it's dussehra and I wanted to write something on it. I seriously don't know how this poem is. If it is likeable or not but it's here for you to judge. Do share your thoughts because I'm eagerly waiting for it.
Thank you for reading.
Happy Dussehra :)
Your Friend
Kanchan Mehta :)
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