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पहला दिन

पहला दिन

बैठे बैठे थक जाते हैं
तो दिल तुम्हारी ओर खींचा चला आता है
याद करता है वो पल जब तुमसे
आखरी बार मिला था ये, आंखों में आंसू थे तुम्हारे
होंठो पर पुकार ना जाने की
पर बड़ी मुश्किल से खुद को मनाया हमने
हाथों से तुम्हारी नन्ही उंगलियों को फिर छुड़ाया हमने
बड़ी मुश्किल हुई जब मुंह तुमसे फेरा था
कानों को भी तुम्हारी चीखों को सुनने नहीं दिया हमने
बस यही कह खुद को मनाया फिर हमने
कि यही तुम्हारे लिए बेहतर है, स्कूल जाना ही बेहतर है
पर अब दिल मान नहीं रहा, वक़्त कट नहीं रहा
घड़ियां गिन रहा है ये, कि कब वो पल आएगा
जब तुम हमें देख मुस्कुराओगे
ओर सीने से लिपट जाओगे
फिर हर तड़प मिट जाएगी उस सुबह की
जब तुम्हारी नज़रों में ढेरों शिकायतें थी
ओर होठों पर बात हमसे ना बिछड़ने की
पर अब शिकायते नहीं होंगी तुम्हारे होंठों पर
होंगी तो बस बातें उस नए माहौल की
जिससे तुम आज परिचित हुए
और वो शब्द जो मुझे
अहसास कराएं कि तुमने भी मुझे याद किया
हर तड़प मिट जाएगी फिर इस दिल की
ओर कड़वी सुबह मिठी शाम में बदल जाएगी

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Hello lovely friends and followers.
The lovely cover in the poem is made by my friend sandhuruhi. Please show her some love and if you need a cover for your book. I'm sure she will be happy to help.
Thank you Ruhi for this beautiful cover ☺️

Your friend
Kanchan Mehta ☺️

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