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नासूर

तुझे चाहतों पर यकीन ना था

पर मेरी हसरत तो तू ही था

क्या करूँ इस दिल को जो तेरी हसरत में

खुद को फनाह करना चाहे

रोक देना चाहे इस दिल को

जो तू इसे ना चाहे

तेरे दिदार की हसरत ही तो

इसे चलाए रखती है

तेरे प्यार की हसरत ही तो है

जो इसमें बहते खून को

सफेद होने से रोकती है

लड़-मरना चाहता है ये तेरे लिए

पर तेरे बिन जीना इसे मंजूर नहीं

तेरी हसरत ही तो है

जो इसे जलाए रखती है

ये चुभन

के तू इससे दूर है

इसे रुलाए जा रही है

बह रहा है लहु

पर वो भी पानी सा है शायद

क्यूँकि इसे देख,

तेरा दिल ना पिघरा

तेरी हसरत तो इसे आज भी है

पर तेरा जूनून इसे ज़ख्म दिए जा रहा है

और हर दिन के साथ ये ज़ख्म

नासूर बनता जा रहा है ।

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