
दर्द
है दर्द की कहानी अजीब
चाहे तेरा हो या मेरा
आंखों को पानी से भर ही देता है
है रंग नहीं इसका कोई
फिर क्यों हर कोई इसे खून से है जोड़ता
खून का रंग लाल है
ज़मीन पर पड़ा
ये चाहे मेरा हो या तेरा
आंखों को छलका ही जाता है
बड़ी अजीब हो रही है दास्तान आज कल
राजनीति भी पल पल रंग बदल रही है
कल जो ज़ख्मों पर मरहम लगाने का दावा करती थी
आज उन्ही को कुरेद रही है
बात 47 की नहीं है
ना है 84 की
ये तो उस दर्द की है
जिसकी याद बार बार दिलाई जा रही है
दर्द तेरा हो या मेरा
सबकी ही आंखे भर देता है
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