तन्हाई
तन्हाई है तन्हाई
हर ओर भीड़ है
फिर भी है तन्हाई
लोग रोज़ मिलते हैं
पर अपने नहीं होते
मुस्कुराते तो हैं
पर आंखों में चमक नहीं ला पाते
मीठा भी बहुत बोलते हैं
पर कुछ कड़वाहट
ना जाने क्यों दिल में ले ही आते हैं
फिर वो तन्हाइयों का मोल बता जाते हैं
चाहे कितना भी खले ये तन्हाई
इससे अपना आज के युग में कोई नहीं
ये ना कोसती है, ना टोकती है
ना बतलाती है कि तुम कितने नासमझ हो
ये तो बस साथ निभाती है।
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