
ढोंग
ना मुझे ऐतराज़ तेरे सवालों पे
ना तुझे ऐतबार मेरे जवाबों पे
फिर क्यूँ करते हैं ये ढोंग हम
क्यूँ ये समझते नहीं
साथ हैं, पर रहें भी
ये ज़रूरी तो नहीं
ना यकीन रहा इस रिश्ते में
शक ने दामन है ऐसा थामा
आप हमें गुनहगार मानते हैं
और हम कैदी बनते नहीं
नहीं चाहते रहना इस कैद में
जो कभी एक हसीन रिश्ता था
पर आज हमारी इस घुटन का है सबब बनी
सबूत है इस बात का
इस नाकामी का
जो हमने जीवन मे साथ मे देखी है
नाकाम हुए हम दोनों
फिर भी ना जाने तुझे किस बात की चिढ़ है
क्यूँ तेरी चिढ़ मेरे लिए शक में बदली है
तेरी शक की आग में आखिर
क्यूँ मैं ही झुलसती रहूँ
आखिर क्यूँ मैं ये ढोंग करती रहूँ?
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