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झिझक

मैं ऐतबार नहीं करती उन बातों का
जो मैं समझ तो सकती हूँ
की सच हैं
पर कुछ है, जो मुझे रोकता है
मानने से कि
हाँ ऐसा भी हो सकता है

'हूँ पागल मैं!'

ये ख्याल अक्सर सताता है
क्योंकि जो बात समझ सकती हूँ
उसे मानना पागलपन लगता है
पर पागल नहीं मैं
ये भी मैं जानती हूँ
बस ऐतबार नहीं करना चाहती
इसलिए डर लगता है
झिझक होती है
किसी से कुछ कहने से भी
खुद को मनाने का भी दिल नहीं करता
डर लगता है कि
जो मान जाऊं उस अहसास को
तो ना जाने क्या होगा
जो अब तक बस एक ख्याल है
कहीं हकीकत में ना बदल जाए
हकीकत उतनी बुरी भी नहीं
ज़िन्दगी में हर कोई इससे गुज़रता है
पर दिल का एक कोना है
जो अब भी इससे छिपना चाहता है
मनाना चाहता है खुदको कि ये कहाँ सच है
वक़्त नहीं आया अभी
अब भी कुछ बाकी है
ज़हन कहता है
मान ले ये हक़ीक़त है
झुठलाना इसे आखिर कब तक काम आएगा
हर सूरत में सच कभी तो सामने आएगा
वक़्त आगे बढ़ रहा है
तेरे पैर जमा लेने से ये रुकेगा नहीं
ना ही थमेगा कि तू इसके साथ कदम मिला सके
ये तो बस चलता जाएगा अपनी गति से
बस ख्यालों में खो तू ही पीछे रह जाएगा
झुठलाना सच को आखिर किसके काम आया है

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Happy Diwali dear friends and followers ☺️

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