चाहत शोर की
ना गम के काले बादल हैं
ना दुख के आँसू हैं छलक रहे इन आँखों से
कुछ बातों पे मुस्कुराहट भी आती है इन होठों पे
पर कुछ बातें हैं
जो दिल को जकड़े हैं
है ज़हन ये अंजान कि
आखिर हो क्या रहा है
क्यूँ कुछ महसूस नहीं होता
क्यूँ सब बस बेगाना सा है
क्या है ऐसा जो इस दिल को
खामोश किए बैठा है
जो ना इसकी हँसी गूंजती है
ना सिसकियाँ सुनाई देती हैं किसी को
क्यूँ बस खामोश है सब इस कदर
कि शोर की चाहत सी होती है।
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