खत
खत हैं लेकिन पता नहीं
वक़्त है पर खतों का ज़माना नहीं
लिखने का मन है
पर पढ़ने वाला कोई नहीं
अरे भई खतों का ज़माना ही नहीं
Whatsapp, twitter के ज़माने में
खतों की कोई पूछ नहीं
Short messages का ज़माना भी गया
खतों की तो कहाँ बात रही
अब तो बात face to face हो जाती है
दूर बैठे भी video call हो जाती है
फिर कहाँ से खतों का कोई इंतज़ार करने बैठे
डाकखानों की तो शक्ल भी याद नहीं
आए तो बस सरकारी चिट्ठी आती है
वरना आजकल तो डाकखानों का भी कोई काम नहीं
जो parcel करना हो तो courier आम है
अब रहा ना डाकखानों का कोई काम है
दोस्ती यारी भी इंटरनेट पर हो जाती है
ना नाम पता होता है
ना ही कोई पहचान होती है
खतों में नहीं messenger में बात होती है।
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