
कहानी
औरत की यही कहानी है,
समाज के नियमों से बंधी ,
वो अपनी जात से ही हुई बेगानी है ।
बनाए रखे नियम समाज के,
अपने अस्तित्व को खोके भी वो अडिग रही ।
मिले तो बस तिरस्कार ,
पर सिखाए हर उसूल पर वो चलती रही।
है समाज खड़ा उसके त्याग की नींव पर,
पर इस बात को आखिर किसने माना है ।
ये तो उसकी ज़िम्मेवारी है,
आखिर किया क्या उसने निराला है!
है औरत वो !
और यही उसकी कहानी है !
जीवन जकड़ा है नियमों से,
सिखाना अगली पीढ़ी को जिन्हें,
उसी की ज़िम्मेवारी है ।
है निभाना हर ज़िम्मेवारी को ,
सिखलाया है इस समाज ने उसे ।
और सीखी हर बात को भुलाए ,
ऐसी उसकी फितरत नहीं ।
है ये कहानी औरत की,
कहने को वो गुलाम नहीं ।
पर बनाए रखना नियमों को ,
है ज़िन्दगी उसकी ।
गुलामी की बेड़ियों से सख्त ,
नियमों की ज़ंज़ीर है आज-कल ।
जकड़ी है जिनमें ,
रूह तक उसकी ।
उठाया है समाज के हर बोझ को,
अपने कांधों पर उसने,
पर फिर भी कोई उसका शुक्रगुज़ार नहीं ।
हर बात उसकी निराली है,
फिर भी ज़िन्दगी उसी की एक बोझ भारी है ।
है गुमान कुछ में ;
ना ज़िन्दगी ये हमारी है
है हक हमें
ना है हम गुलाम कोई
ना जकड़ेंगी नियमो की बेड़ियों में हम कभी
कहती हैं बड़ी शान से ।
पर हर किसी का सच अपना है,
बदलते वक़्त का भी कुछ तकाज़ा है।
बदला वक़्त ज़रूर है,
पर ना बदली ये हक़ीक़त है ।
समाज के नियमों का बोझ आज भी,
बस नारी को ही ढोना है।
वक़्त बदला है ,
पर ना बदली औरत की कहानी है ।
जीवन एक बोझ आज भी उसका,
और कांधों पर बस ज़िम्मेवारी है ।
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Happy Womens Day ☺
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