क्यूँ गीत लिखूं
क्यूँ गीत लिखूं,
जब तेरी आँखों की मदहोशी मुझे सताती है?
क्यों बोल दूँ उन लम्हातों को,
जो मेरे दिल को सताते हैं?
तेरी आंखों की चमक मुझे अब भी याद है।
तेरे चेहरे का नूर मुझे अब भी याद है।
तेरे बालों की सुगंध भी मुझे मदहोश करती है।
है याद वो खनक,
जो तेरी हंसी में आज भी गूंजती है।
वो छन छनाहट तेरी पायल की,
जो मुझे दीवाना करती थी।
वो लाली तेरे गालों की,
जो मेरे लबों पर मुस्कुराहट ला देती थी।
तेरी हर बात जो मेरे दिल पर छपी है,
बता क्यूँ उन जज़्बातों को शब्द दूँ,
जिन्हें तूने कभी समझा ही नहीं?
क्यूँ गीत लिखूं उन लम्हातों पर,
जो तुझे अमर कर दें,
और मुझे दीवाना?
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