उमंग और हक़ीक़त
मुझे प्यार नहीं था किसी के ख्वाबों से
मैं तो अपनी ही ज़िन्दगी की उलझनों में उलझी थी
ऐतबार नहीं था उसकी बातों पे
ना जाने कितने ख्वाब दिखाए उसने मुझे
पर डर लगता था देखने से
क्योंकि ख्वाब सच नहीं होते
मेहनत से जीवन चलता है
ख्वाब तो नींद का प्रॉडक्ट हैं
बेखबर, बेसब्र जब हम
नींद के आगोश में होते हैं
तब आ जाते हैं हमें तंग करने
मीठे मीठे दृश्य दिखा दिल मोहने
पर हक़ीक़त से राफ्ता जब पड़ता है हर सुबहा
तो याद आता है
ख्वाब तो नींद के साथी हैं
हक़ीक़त के दामन से इनका कोई नाता नहीं
फिर क्यूँ करूँ यकीन उसकी बातों पर
जो दिखाता सिर्फ ख्वाब है
ना वास्ता है उसका हक़ीक़त से
ना असलियत से वो वाकिफ है
है तो उमंगों की उड़ान
जिसे भरने को वो मचल रहा है
भूल जाता है के
उमंगों और हक़ीक़त का साथ हमेशा नहीं होता
वो तो दो राही हैं
जो नदी के दो किनारों की तरह
साथ चले जा रहे हैं
पर जिन पर पुल कभी-कभी ही बनता है ।
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Happy Republic Day my Fellow Indians 🇮🇳
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