इज़हार
ना कर इज़हार ऐसा
के मैं इंकार ना कर पाऊँ
ना कर इकरार ऐसा
के मैं स्वीकार ना कर पाऊँ
ना दे मुझे सज़ा ऐसी
के मैं खुद से ही रुठ जाऊँ
ना सम्भाल पाऊँ इस
बेकरार दिल को
ना रोक पाऊँ
अपने बहते आंसुओं को
ना कह वो प्यार भरे लफ्ज़ मुझसे
जो मुझे तीर से फिर चुभते रहें
क्योंकि ना कर पाऊँगी इकरार तुझसे
दिल चाहे जितनी सदाएं दे फिर मुझे
ना उठा पाऊँगी वो कदम
ना चुन पाऊँगी वो राह
जो मुझे मेरे अपनों से दूर कर दे
कर सकूँ तो
बस एक इल्तजा तुझसे
ना दे लफ्ज़ इन जज़्बातों को
जो तेरी आँखों में मुझे दिखते हैं
ना सुन पाऊँगी उन्हें
ना कह पाऊँगी कि
उनका अहसास मुझे भी है
पर ये राह मेरी नहीं
इसलिए ना कर ये इज़हार मुझसे ।
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