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रंगरेज - 2

रंगरेज -2

मेरे रंगरेज जो खुद एक उपहार है,
वो चले उपवन हमें उपहार देने,
छोड़ आए सारे रंग बिरंगे फूलों को,
और तोड़ लाए मेहँदी की पत्तियों को...

जो खुद एक फूल है
उसे क्या फूल दूँ!
रंग बिरंगे फूलों का क्या!
जब इन्हें मुरझाना ही है!
तो सोचे क्यो न वो रंग दे जो
किसी और ही रंग की गवाही दे।

💗💗💗💗💗💗💗

ओ रंगरेज!
"भरी पड़ी है ये दुनिया
झूठे वादो और खोखले दावो से,
भरी पड़ी है ये दुनिया
लोगों की साजिशो और आपसी रंजिशो से,
छा गयी है एक उदासी मन में
इस जहां में फैली नफरत से। "

"हम वादे नहीं सात वचन निभाएंगे,
हम दावा नहीं ;
एक - दूसरे की खुशियों की जिम्मेदारी उठाएंगे,
माना कि इस जहां में नफरत है फैली
मगर हम अपने प्यार की एक अलग दुनिया बसाएंगे। "

कुछ देर यूँही उन्हें देखकर हमने फिर सवाल किया,
" क्या रूठ कर कभी दूर चले जाओगे मुझसे? "
क्या भूल जाओगे अपनी नाराजगी में इस प्रेम को कभी? "

"रूठने का हक है हमारा,
मनाने का हक है तुम्हारा!
हम तो रूठा ही करेंगे इसलिए
कि तुम हमें मनाओ प्यार से! "

ये सुन मै भी बोल पड़ी,
" अगर कभी मै रूठकर प्यार से नहीं मानी तो? "

"तो हम कोई रिश्वत देकर मनाएंगे,
या कोई शरारत करके मनाएंगे,
अगर फिर भी बात न बनी तो,
जबरदस्ती मनवा लेंगे मगर साथ न छोड़ेंगे!"

और रंगरेज की इन बातों से
छायी हुई मन की उदासी गई भाग
और दे गई प्यार भरी मुस्कान।

💗💗💗💗💗💗💗

To be continued.....

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