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बसंत के बादल

बसंत के बादल 

क्या उस रात गरज रहे थे बसंत के बादल यूँही ;
या बयां कर रहे थे दर्द किसी की दबी चीख का?
क्या उस रात बरस रहे थे बसंत के बादल यूँही ;
या बाँट रहे थे गम किसी का?

लेकर फायदा रात के सन्नाटे का ,
हुई बारिश घनघोर रातभर ,
हुए आजाद दर्द भरे अश्रु रातभर ,

क्या सिर्फ शीतल हुई थी धरती उस बरसात के बाद ,
या बहकर दूर चला गया था कोई दर्द भी उस बरसात के बाद?
क्या सिर्फ भीनी - भीनी सी मिट्टी पर सूर्य की किरणें ही पड़ रही थी ,
या कोई आईने में अपनी सूजी आँखों को लिए मुस्कुराने की कोशिश कर रहा था!

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