धर्मजय
समय मौन हुआ है बरसों से,
मैं तकती हूं उसकी आंखें झुकी हुई
मैं तकती हूं उसके मुरझाए सूखे होंठ
मैं तकती हूं उसके हाथ पे रखा हाथ
बिन पलकें झुकाए मैं तकती रहतीं हूं
बस देखती रहती हूं।
मेरी धड़कन भी तकती रहतीं हैं
दिल में आता-जाता खून भी,
टीस उठती है अब तो
कि अब सांसें ना थम जाएं,
कि सांसें थमने से पहले,
जीवन का दामन छूटने से पहले;
एक आखिरी दुआ मेरी कुबूल करना–
सांस छूटने से पहले,
मृत्यु की दुल्हन बनने से पहले,
मेरे सोलह दिन, वो सोलह रातें,
उसमें रमा मेरा तन, मन, हर रोम,
जाए कालचक्र के पास और कर दे
सफल मेरी आराधना, ले आए आशीष इतना
"ये आंखें मेरी न्याय देखकर ही दम तोड़े,
ये आंखें मेरी महायुद्ध देख कर ही दम तोड़े,
ये आंखें मेरी धर्म की विजय देखकर ही दम तोड़े।"
— सुचित्रा प्रसाद ✍️❤️🌻
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