जिंदगी
जिंदगी
क्या-क्या खेल खेलती है ये जिंदगी,
कभी -कभी कितना रुलाती है ये जिंदगी,
कभी -कभी कितना हसाँती है ये जिंदगी,
कभी तो बस हद कर देती है ये जिंदगी।
कभी -कभी तोड़ देती है ये जिंदगी,
टूट के दोबारा जुड़ने को ही तो कहते है जिंदगी,
जिंदगी भर तलाशो खुशी को इस जिंदगी में,
और वो गम के सौगात देने से थकती नहीं है ये जिंदगी।
क्या खोया,क्या पाया उसी का हिसाब कराती है ये जिंदगी,
लाख कोशिश करो जिस राह को न चुनने की,
उसी राह पर खड़ा कर देती है ये जिंदगी,
मेरी इस कविता की तरह शायद कुछ,
अधूरी सी है मेरी भी जिंदगी।
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