एक सूर्यास्त ऐसा भी
एक सूर्यास्त ऐसा भी
ये ढलता सूरज लाया है पैगाम बदलते वक्त का,
बिखरती इसकी लालिमा कहती है मुझसे,
कुछ यूहीं बिखरने को तैयार हैं खुशियाँ तेरे भी जीवन में,
दूर गगन में उड़ते पंछी कहते हैं मुझसे,
उड़ लो दूर गगन में चाहे जितना भी तुम,
दिन ढले तो न तोड़ना नाता अपने घोंसले से तुम।
दिन ढलने पर आयेगा अंधेरा जरूर,
पर देखो! चाँद अभी से तैयार बैठा है अंधेरे में साथ देने को,
कहीं दूर से चिड़ियों ने चहचहाया हैं,
तो लगा मैं अकेली नहीं जिसके जीवन में सूर्यास्त आया है।
तो चलिए इंतजार करते हैं नये सूर्योदय का,
और तब तक इस अंधेरी रात में,
दोस्ती कर लेते हैं चाँद से और टिमटिमाते तारों से,
और कर ले ज़रा हँसी - ठिठोली इन तारों से हम।
कुछ यूहीं ये रात कट जाएगी तू धीरज तो धर,
कुछ यूहीं खुशियाँ आयेगी तू इंतजार तो कर,
चाहे जो भी हो रात के अंधेरे से तू मत डर,
सवेरा होने तक अपना हौंसला बुलंद तो कर।
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