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दिल-ऐ-नादां

ऐ दिल-ऐ-नादां ना जाने क्यूँ तू ऐसा करता है ,

क्यूँ उस बेदर्दी की याद में खुद को आज भी खो देता है ?

ना याद करता है वो कभी तुझे ,

ना तू उसे कभी भूलता है ।

ये कैसा अंजाना रिश्ता है ,

उस बेदर्दी से तेरा ?

क्यूँ तेरी नादानी का गम मुझे मिलता है ?

बोल ऐ नादां दिल मेरे ,

क्यूँ तू हर गम सहता है ?

क्या रखा है उस नज़र में तेरे लिए ,

जिसकी एक झलक को तू तरसता है ?

कयूँ सावन  की इन बरसातों में ,

उसके साथ को तरसता है ?

क्यूँ बारिश की हर बूँद ,

तुझे उसकी याद में झुलसाती है ?

क्यूँ ये ठंडी हवा ,

तुझे जलाती है ?

क्यूँ लहराते पत्तों की सनसनाहट में भी ,

तुझे उसी की आहट आती है ?

क्यूँ आज भी जब सब इन बूंदों में अपने आँसूं छिपाते हैं ,

उसके आने की आस से तेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है ?

क्यूँ भूल जाता है तू के वो पंछी नहीं है ,

जो बादल देख अपने बसेरे को लौट आते हैं ?

वो तो वो बाज़ है जो

बादलों को भी निचे छोड़ शान से उड़ता है ।

बस छोड़ दे अब ये नादानी ,

मुझे डर लगता है ।

एक बार संजोया है तेरे टूटे टुकड़ों को ,

अब दुबारा तेरे टूटने से डर लगता है ।

@@@@@@@@@@@@@@@@@इसके बाद मुझे समाझ नहीं आया कि end कैसे करूं ।

अगर आप लोग end कर सकें तो नीचे comment box में comment ज़रूर करें  ।

धन्यवाद

@@@@@@@@@@@@@@@@@
Thank you for reading this poem. don't forget to vote and comment.
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Kanchan Mehta :)

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