17 | मच्छर
"तुमने हमारे नेता को गाली कैसे दी?"
"मैने कब दी?"
"तुमने कहा कोई तुम्हारा खून चूस रहा है।"
"हाँ तो घर में मच्छर बहुत हैं।"
"मच्छर की बात तो हुई नहीं।"
"बात तो आपके नेता की भी नहीं हुई।"
"तुमने जिस लहजे में कहा कि तुम्हारा खून चूसा जा रहा है तो हमें लगा की सरकार की आलोचना कर रहे हो।"
"नहीं-नहीं मेरी इतनी औकात कहाँ। मैं तो बस मच्छरों से परेशान हूँ जो बेवजह ग़रीब का खून चूस लेते हैं।"
"तो मच्छर मारने की दवा खरीद लो।"
"इस महंगाई के दौर में मच्छर मारने की दवा...कैसी बात कर रहे हो? दो वक़्त की रोटी मिल जाए वही बहुत है"
"देखो तुम फिर से सरकार की आलोचना कर रहे हो।"
"ठीक है बंधु। मैं कुछ बोलूँगा ही नहीं चुपचाप अपने घर चला जाता हूँ।"
"नहीं तुम चुप मत रहो, बड़बड़ाते हुए जाओ वरना लोग कहेंगे तुम्हे बोलने की आज़ादी नहीं हैं।"
'जी हुजूर, बड़बड़ाते हुए चला जाता हूँ। अलविदा!'
गोपी किसान ने किसी तरह थॉट पुलिस से दूरी बनाई और तेज़ी से निकल लिया। अगली गली में मुड़ कर सीधा पनवाड़ी की दुकान पर जाकर पसीना पोंछते हुए बोला, "रावत भैया, कहीं तुम्हारा खून तो मच्छर नहीं चुसते?"
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