Chapter 3
"...... मेरी छोटी बहन, साक्षी के साथ भी कॉलेज के दिनो में एक लड़के ने ऐसा ही किया था उसने भी कई वादे किए मगर जब निभाने का वक्त आया तो छोड़ दिया किसी और लड़की के कारण।,..... तुम्हारे पापा को याद होगा, मेरी बहन और वो एक ही कालेज में थे।" मीनाक्षी ये बोलकर उसके पापा के तरफ देखने लगती हैं, जिसे देख कर ऐसा लग रहा था मानो उनकी जिंदगी की किताब का वो पन्ना खुलने को तैयार हैं जिसमे उनका अपराध लिखा हो!
मीनाक्षी आगे कहती है, " वो तो अपनी जिंदगी खत्म करने जा रही थी.... मगर फिर मैं, मेरे परिवार वाले और उसके दोस्तों ने मिलकर उसे सम्भाला.... इसलिए मैं समझ सकती हूँ कि तुम पर क्या बीत रही होगी।"
( इतना सब कुछ सुनने के बाद कल्पना के पापा के चेहरे का रंग ही उड़ जाता है, उन्हें डर है कि कहीं मीनाक्षी सब कुछ बोल न दे)
" पता नहीं लोगों को मिलता क्या है किसी के दिल के साथ खेल कर, किसी की भावनाओं के साथ खेलकर!"
इतने सालो बाद अपनी बेटी को उसी दर्द को सहता देख, कल्पना के पापा को वो दर्द महसूस हो रहा था जो उन्होने किसी निर्दोष को दिया था। उस दिन उन्हें एहसास होता है कि उनसे कितनी बड़ी गलती हुई। वो कुछ बोल नही पाते है क्योंकि उन्हें अपराधबोध हो चुका था।
मीनाक्षी उस घटना को राज ही रखना बेहतर समझती है और कल्पना को हौसला देने की कोशिश करती है, " बुरे वक्त की मुझे एक ही बात अच्छी लगती है कि खत्म होने के बाद अच्छा वक्त भी आता है। भूकम्प के आने से बहुत कुछ टूट कर बिखर जाता है मगर ये नवनिर्माण का अवसर भी देता है। अब तुम आंसू बहाने के बदले अपने ईश्वर को धन्यवाद दो की वो फरेबी चला गया तुम्हारी जिंदगी से। "
"आप सही बोल रही है आंटी की अच्छा हुआ , वो फरेबी चला गया, अबसे मैं उस फरेबी के लिए कोई आंसू नही बहाउंगी। " कल्पना ये बोलकर मीनाक्षी की तरफ देखकर मुस्कुराने की कोशिश करती है।
" ये हुई न बात..... अपना ख्याल रखना, अब मै चलती हूँ काफी देर हो गई है। " मीनाक्षी ये बोलकर जाने के लिए खड़ी होती है, तभी कल्पना की मां उन्हें धन्यवाद देती हैं। मीनाक्षी उन्हें भी कहती है कि वो कल्पना का ख्याल रखे। मीनाक्षी जा रही होती है तभी कल्पना के पापा उसे दरवाजे तक छोड़ने के लिए उसके पीछे जाते है।
उसके पापा को समझ नहीं आता कि कैसे वो सालो पहले की हुई गलती की माफी मांगे.... काफी हिम्मत जुटाने के बाद, जैसे ही मीनाक्षी अपनी स्कूटी चालू करने वाली होती है, वो सहम कर पूछते है, " अब... साक्षी कैसी है? "
मीनाक्षी कुछ देर उनकी तरफ देखने के बाद उत्तर देती है, " ईश्वर के आशीर्वाद से साक्षी की जिंदगी अच्छे से ही कट रही है,... काफी अच्छा ससुराल और पति मिला है उसे,...... देर से ही सही मगर जिन खुशियों के वो योग्य थी वो मिली उसे!" ये बोलकर मीनाक्षी अपने घर के तरफ निकल जाती है।
रास्ते में वो सोचती है कि आज का दिन यादगार रहा, कल्पना के लिए उसे बुरा तो लग रहा था मगर जिस इंसान ने उसकी बहन के आँखों में आंसू दिए थे आज उसी के आँखों में अपराधबोध देखकर ऐसा लगा जैसे नियती ने अपना काम कर दिया, इंसान चाहे कहीं भी चला जाए मगर उसके कर्म कभी भी उसका पीछा नहीं छोड़ते....।
########The End ########
Agr aapko meri ye kahani pasand ayi h to pls vote, comment and share!
Is kahani Ka kon sa character apko Sabse jyada pasand aya ya kisne Sabse jyada aapko prabhavit kiya comment krke jrur boliyega! 😇😇😇
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