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Chapter 1

*This story is just a work of my imagination.
* I don't allow any other translation of this story.
            
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"छोड़ो मुझे!.... हाथ छोड़ो और जाने दो!", रास्ते में जब एक लड़की की ऐसी आवाजे आई तो 45 साल की मीनाक्षी जो अपने काम से घर लौट रही थी, उसे अपनी स्कूटी रोकनी पड़ी, पीछे मुड़कर देखी तो एक लड़का एक लड़की से बदतमीजी कर रहा था। मीनाक्षी तुरन्त उनकी ओर गयी और उस लड़के को एक जोर का तमाचा लगायी।
    
वो लड़का थोड़ा घबड़ाया और अपनी बाईक लेकर नौ -दो ग्यारह हो गया। मगर जाते -जाते धमकियों की बरसात भी करते गया।

मीनाक्षी ने उस सहमी हुई लड़की से उसका नाम पूछा।
फिर लड़की ने उत्तर दिया, " थैंक्यू आंटी, आप नहीं होती तो वो मुझे मार ही डालता.....मेरा नाम.. कल्पना है।"
       "कौन था वो लड़का?" मीनाक्षी ने पूछा। मगर कल्पना इतनी डरी हुई थी कि रोने लगी और कुछ नहीं बोल पा रही थी।

" रोना बन्द करो बेटी! चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूँ! " मीनाक्षी ने कहा। मीनाक्षी कल्पना को अपनी स्कूटी पर बिठा कर उसके घर लाती है। रास्ते में कल्पना उन्हें बोलती है कि वो लड़का उसके साथ कॉलेज में पढ़ता है, और उसके साथ झूठा प्यार का नाटक किया।
कल्पना ने आगे कहा " आंटी! जब मुझे उसकी सच्चाई पता चली तो उससे सवाल की, कि आखिर क्यो उसने मेरे साथ ऐसा किया! मगर वो लड़का उल्टा मुझे ही चरित्रहीन करार देकर मुझसे बदतमीजी करने लगा। "
       
        "तुम अब उससे सारे रिश्ते तोड़ दो, ऐसे लड़को के लिए अब कभी मत रोना! और अभी तो तुम्हारे सामने काफी लम्बी जिंदगी पड़ी हैं जिसे खूबसूरत भी बनाना है तुम्हें।" मीनाक्षी ने कल्पना को हौसला देने की कोशिश की।

तब तक वो कल्पना के घर पहुँच चुके थे। कल्पना उन्हें घर के अंदर आने के लिए कहती है। जैसे ही घर का दरवाजा खुलता है, मीनाक्षी सामने खड़े आदमी को देखकर चौंक जाती है और वह आदमी भी सालो बाद मीनाक्षी को अपने सामने देखकर चौंक जाता है।

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