बताते भी तो क्या?जताते भी तो क्या?
अपनी चाहत को हमसुनाते भी तो क्या?
हमसफ़र थे शायदहम दोनों सिर्फ नाम के
नासमझी के धागों मेंसमझ पिरोते भी तो क्या?
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