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इस अकेलेपन में कहीं
खो रहे है अपने आप को
इसी अकेलेपन में फिर
ढूंढ रहे है अपने आप को

आसुओं के समंदर में
डूबा रहे है अपने आप को
खुशियों के भवंडर में फिर
उड़ा रहे है अपने आप को

क्या सही क्या ग़लत
इसी में समा रहे है अपने आप को
खयालों के मायाजाल से फिर
सजा रहे है अपने आप को

नाराज़गी के रास्तों पर
चला रहे है अपने आप को
सुलह की चिंगारी से फिर
जला रहे है अपने आप को

क्यों? क्यों अपने आप में यूं
उलझा रहे है अपने आप को?
क्यों सुलझी हुई गांठ में फिर
बांध रहे है अपने आप को?

क्या डरते है
जी हा
क्या डरते है कि
कही भूला न दे अपने आप को?
फिर क्यों सुबह शाम यू
याद कर रहे है अपने आप को?

क्यों सुबह शाम यू याद कर रहे है अपने आप को?

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