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कुछ अल्फ़ाज ७

मैं थी बहुत दूर माँ से अपने,
रोती थी उनकी फोटो को देख के।
लेकिन मेरी माँ नहीं थी कमज़ोर,
मानो उस फोटो में से कहती:
"आँसू पोंछ और कस ले कमर,
मेरी यादें तेरी कमज़ोरी नहीं हैं।
वादा किया है कुछ कर दिखाने का,
आँसू बहाने के बजाय अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की जरूरत है।"

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देखो क्या इत्तफ़ाक है,
कि हमें था इंतजार तुम्हारे संदेशे का;
और लो ! वो मेरे दर पर
आखिरकार आ ही गया....

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ऐसी मदमस्त आँखों से
ऐसी बचकानी हँसी से
ऐसे खुबसूरत चेहरे से,
भला कोई बेहोश कैसे ना हो ?

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मत कहो कुछ भी
कहने की जरूरत नहीं है।
वो दिल की आवाज़ काफी है,
तुम्हारी हर बात मुझ तक पहुँच चुकी है।

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वो कहती है मना लेगी
तोहफों से मेरे रूठे जिगर को,
पर शायद वो नहीं जानती
कि तोहफों में अब वो काबिलियत नहीं।

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कौन-सी बात दिल में दबा के रखी है,
जो आने नहीं दी बाहर आँसुओं के बहाने।
माना कि शब्दों में उतनी ताकत नहीं जितनी आँसुओं में है,
पर फिर भी बता के देखो मुझे, शायद एहसास हो जाए सुकून का तुम्हें...

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जगह, वक्त और शब्द आपके होंगे
सुनने को कान मेरे बेकरार होंगे।
जिन भी बातों ने परेशान किया है आपको
उसे समेटने के लिए मेरे दिल के दरवाज़े हमेशा खुले होंगे।

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