कुछ अल्फ़ाज ३९: संगीत
हम मुसाफ़िर हैं जिंदगी की कश्ती के
चले वहीं जहाँ हवा ले चले...
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चाय की चुस्की
और आपकी मौज़ुदगी
बातें कुछ खट्टी कुछ मिठी
क्या खुब है ऐसी जिंदगी।
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वक्त, जगह, माहौल आपके होंगे
मिलने को हम बेकरार होंगे,
आप बताइए बस ईशारा तो कीजिए
हाज़िर-ए-जवाब करते हुए हम तैयार मिलेंगे।
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जो वो ना समझे बातों को
जो किताबों की मल्लिका है...
मैं स्तब्ध निशब्द हो जाऊँगा
जो कि मुमकीन ही नहीं है...
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कदम-कदम पर हैं हम परीक्षाएँ दे रहे,
और कुछ लोग बिन परीक्षा के ही जीवन से हैं खेल रहे...
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सरगम ऐसा उन्होंने छेड़ा,
बैठना भुल गया मेरा एक-एक रौंगटा...
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संगीत में समझना क्या ना समझना क्या
बस एक वो तान है एक मेरे मन की धुन...
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संगीत की धुन में रात कब बीती पता ना चला
बातों-बातों में दोस्त के संग रंगमंच कब सजा पता ना चला...
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संगीत ने मुझे इस जग से ऊपर कर दिया
तुम इज्ज़त दो ना दो, मैं मोह-माया से परे जा चुका।
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चित्र स्त्रोत: इंटरनेट से।
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