
कुछ अल्फ़ाज ३७
नशे में हम रहे हुस्न के
नशे में हम रहे मोहब्बत के-
कभी मदिरा से दोस्ती ना हुई,
ज़माना तब भी हमसे बैर करता है...
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शब्द जो मैं लिखूँ
कोई तारीफ़ करता नहीं।
एक है पर खास कोई,
मेरे शब्दों की तारीफ़ करते थकती नहीं...
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मैं जो आज हुआ तेरे जुल्फों से रूबरू
मैं जो आज किया तेरे नैनों से गुफ़्तगू
मेरा दिन खुशनुमा-सा लगता है,
मेरा दिल गुलों-सा खिलखिलाता है।
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मैं जो आज ना हुआ तुझसे रूबरू
मैं जो ना महसूस कर पाया वो सुकून
दिल कुछ रूठा-सा लगता है,
मन कुछ बुझा-सा लगता है...
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बदलाव करने तो कई निकल पड़े
क्या ख़ाक कुछ बदला?
वादे तो कितने करके निकल गए
क्या ख़ाक कोई वादा पूरा हुआ?
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यह जो हवा चली है
काफ़ी मदहोशी भरी है।
पता नहीं कब तक चलेगी
किसी दिन उसे रुकना है ही...
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मैं आगे क्या बढ़ूँ?
जो तू ही नहीं कदमताल में...
मैं महान क्या बनूँ?
जो तू ही नहीं मंजिल को साझा करने...
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जो तू है,
अपनी मौजुदगी दिखा तो दे...
जो तू है,
अपनी मेहनत को आयाम तो दे...
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शब्द एक दिन निकलेंगे
मुख से तेरे सोने-से...
रंग लाएगी मेहनत सारी
एक दिन तेरे जीवन में...
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