कुछ अल्फ़ाज ३३
अब गुस्ताखी की है आपने मोहब्बत करने की,
किश्त तो चुकाना ही पड़ेगा।
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पल दो पल की कहानी है
आज ज़ी भर के प्यार कर लो।
कल तो फिर उनकी ही माननी है,
आज थोड़ी अपनी ही सुन लो।
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ख़्यालों को ढूँढने की कोशिश मत करो
ज़ोर मत दो अपने मन पर की ख़्याल आएँ।
बस वो आ जाएँगें,
और तुम उन्हें कलमबद्ध कर दोगे।
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आजकल सियासत की असीम हवा चल रही है,
तुम भी उसके झोकों में कहीं बह ना जाओ।
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भगवान भी आ जाएँगें,
और बलात्कार भी नहीं होगा।
आप राम बन जाओ,
सब कुछ सुलझ जाएगा।
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आसमान को छुने की तमन्ना लिए
तुम संघर्ष करते जा रहे हो।
एक दिन ऐसा आएगा ऐ मुसाफ़िर,
जब आसमान ख़ुद-ब-खुद तुम्हारे सामने झुक जाएगा।
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एक कवि की कलम पर कभी शक मत करना,
जमाना भी इसकी ताकत से थर-थर काँपता है।
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अब ये नए ज़माने में मन रमता नहीं ज्यादा,
वहीं पुराने दिनों के सपने नज़रों में कैद हैं...
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