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कुछ अल्फ़ाज ३०: राहत

हम तो ख़्यालों में डूबे हैं,
बस उन ख़्यालों की मल्लिका का इंतजार है।

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मँझें हुए कलाकार हैं,
और कहते हैं नौसिखिया हैं।

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यूँ मासूम ना बनिए
मासूमियत के नगमें हमने बहुत देखे हैं।

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ऐसे ही चलते रहो ऐ मुसाफ़िर,
मंजिल एक दिन हार के आएगी।

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दरमियान क्या चीज है, मोहब्बत होनी चाहिए।
असमंजस क्यों? पहले कदम की देर है।

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दिल के तार यूँ तो दिखते नहीं,
शायद वहीं प्यार है।

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बीती बातें बस लम्हों में कैद हो जाती हैं,
गलतियाँ जो भी रही हों नज़्मों में दफ़्न हो जाती हैं।

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यूँ तो चल पड़े सफ़र में अकेले अकेले
नज़्में जिंदगी के पीछे छोड़ते गए
कौन मानेगा की राहत अब नहीं हैं,
पवन के हर थपेड़ों में आप समा गए।।😌

यह शब्दों के समूह नहीं
एक युग के चले जाने का गम है।
वो मुस्कुराते होंगे तारों के बीच कहीं,
हम सब में उनकी रूह स्थित है।

(मेरे बेहद ही प्रिय शायर राहत साहब को भावपूर्ण श्रद्धांजली 🌸😔)

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वो बस एक खुबसूरत फूल थी जिसे तोड़ने का मन नहीं किया,
बस संजो के रखने को दिल चाहा जो वाकई मुझसे नहीं हुआ।

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अधूरी दास्तां थी वो खुबसूरत-सी,
क्या बात करें जब पूरी हुई ही नहीं।

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