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कुछ अल्फ़ाज ३: अफ़सोस

हम हैं बेकरार सुनने को उन्हें,
फर्क बस इतना है कि वो भाव नहीं देती हमें।

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इस गर्मी से तो अच्छा हम जहन्नुम में रह जाते,
एक बूँद बारीश की गिर जाए, जन्नत की हवा रूह को जा मिले.....

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एक बार पुछा मैंने;
खिड़की लगाते हैं घर में करने दुनिया का दीदार
फिर क्यों पर्दे से झाँप देते हैं खुशनुमा संसार ।
जवाब मिला--
घर का श्रृंगार पर्दा है न कि खुला हुआ झरोखा
सोचा मैंने--
दुनिया के अस्तित्व को जानने में क्या रोड़ा है श्रृंगार??

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शब्दों में मेरे अब जान नहीं है
मेरे बातों से अब किसी को प्यार नहीं है
रहने दो मुझे चुप शांत जरा
फिजुल के झगड़ो में पड़ने की चाह नहीं है।

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हम शायर हैं दिल वाले किसी ने देखा नहीं
चेहरे तक पहुँच गए दिल में झाँका नहीं।

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आज तक जिनकी यादों में नगमें लिखते थे,
आज उनसे मुलाकात हो ही गई ॥

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जो चॉकलेट के दम पर दोस्ती निभाते हैं,
वे अब भी बचपन से निकले नहीं ।
जो भावनाओं के दम पर निभा ले
वे दोस्त दिल से निकलते नहीं।

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हम तो वो सूखा तिनका हैं,
जिसे किसी ने पानी नहीं दिया;
पर फिर भी जल कर आग में हमने
ना जाने कितनों को सुकून पहुँचाया।

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चित्र स्रोत: इंटरनेट से।

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