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कुछ अल्फ़ाज २३: रूपक

हम तो बस मुखौटा देख सकते हैं,
उसके पीछे क्या है वो रब़ ही जाने।

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बहने दो उसे आज,
वो इश्क़ का दरीया है।
चलने दो उसे आज,
वो सुकून की हवा है।

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दिल छलनी किया है आपने
पुछतीं हैं कुसूर किसका है?
वार किया है आपने
पुछतीं हैं ज़ुर्म किसने किया है?

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यूँ ना हँसो मेरे हाल पर ज़ालिम
दिल बिखर-सा जाता है।

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तुम ध्यान नहीं देती हमपे
पर हम रोज तुम्हारा दीदार करते तो हैं।
तुम नहीं सोचती मेरे बारे में,
पर हम तुम्हारे ख़्यालों में डूबे रहते तो हैं।

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रूप की रानी तेरा रूप कितना विशाल है,
महलों-सा तेरा सौंदर्य महान है।
मैं रहूँ तैनात तेरे लिए दिन-रात,
तेरी मुस्कान ही मेरे लिए काफ़ी है।

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अब कब तक यूँ ही तुम्हारे पीछे पड़े रहेंगे,
कभी तुम्हें भी तो हमारी कमी ख़ले।

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हम इशारों में प्रेम नहीं करते जनाब,
वो तो बचपना था।

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मैं एक मुसाफ़िर हूँ
जिंदगी के रेगिस्तान में फ़िर रहा हूँ।
एक जलाशय दिख जाता है कुछ दूर पर,
मन और दिल के बीच फिर शुरू हो जाती है एक कशमकश।

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चित्र स्त्रोत: Shutterstock.com

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